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चारबाग स्‍टेशनः प्‍लाटफार्म नं० 7–दो / वीरेन डंगवाल


मक्खियां उड़ रहीं
अंतिम फरवरी की धूप में
चारबाग लखनऊ के प्‍लाटफार्म नं. सात पर बेशुमार मक्खियां
हवा में अभिनीत होते एक विलक्षण समूह नृत्‍य में तल्‍लीन

सर्दियों ने बहुत सताया उन्‍हें
उनके अल्‍पपारदर्शी डैनों की सूक्ष्‍म तंत्रि‍काओं में
निस्‍तब्‍ध जमी रही ठण्‍ड
अब जाकर आया है उनकी मुक्ति का अस्‍थाई पर्व
और उनका भी
जो महीनों बाद बिना गले-ठिठुरे
अपने से दूने आकार के रासायनिक टाट के
सफेद थैले लेकर
लाइनों के बीच के मल और पार की हरी दूब को लांघते हुए
बटोर रहे कांच-प्‍लास्टिक की खाली बोतलें
थैलियां-गत्‍ते-कागज और पन्नियां
मक्खियों के साथ इन आबाल-वृद्ध-नर-नारियों का
एक अत्‍यन्‍त घनिष्‍ठ किंवा रहस्‍यपूर्ण रिश्‍ता है
जो दरअसल रहस्‍य नहीं भी है
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