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चार गो मुक्तक / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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1.
दिवाली ओकरोॅ छै,
जेकरा जेबी रुपैइया।
बाँकी के रात भर
भोंकै छै सूईया।

2.
होली ऊ की खेलतै?
जेकरा रंग नैं पिचकारी।
देखी के ललचै छै,
बोलै छै मोॅन-मारी।

3.
देहॅ पर बसतर नैं
हाथोॅ में अबीर-झोली।
बें, की, केनाँ खेलतै?
तोंहीं बोलॅ होली।

4.
परब तेहवार आबै छै,
गरीबॅ कोॅ सताबै छै।
बनियाँ बैकालें
एक केॅ तीन भँजाबै छै।

-रचना-समय-समय पर, 2013