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चार रंग के चार सिंहासन चारों पै बैठारे जी / बुन्देली
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चार रंग के चार सिंहासन चारों पै बैठारे जी।
पूरी कचौरी बड़ा दही के परसी विविध खटाई भले जू।
हलुआ इमरती बालूशाही गुझिया नुक्तीदार बनाई भले जू।
खाजा खुरमा गरम जलेबी पापड़ पुआ सोहाय भले जू।
दूध औ रबड़ी मक्खन मिश्री मोहन भोग मलाई भले जू।
विविध अचार मुरब्बा चटनी कोउ करि सकै न गिनाई भले जू।
भटा रतालू घुइयाँ परसी औ परस दई दाना मैथी भले जू।
छप्पन प्रकार के भोजन बने हैं हरषें सभी बराती भले जू।
मन हुलसाय जनकजू बोले जीमहु चारउ भैया भले जू।