भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चार साल का नाती / अष्‍टभुजा शुक्‍ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अच्छा खासा उत्पाती है
यह जो अपना
चार साल का नाती है
बेटी का बेटा —
पूरा प्रश्नोपनिषद् !

तोंद पर चढ़ जाता है
चढ़कर ताक धिनाधिन ताक धिनाधिन
तबला बजाता है
और पुरखों की तरह
छाँटता है कबोधन —

‘अच्छा नाना, अच्छे नाना, इधर करो मुँह, सुनो ज़रा
मम्मा कहती है —
तुम मेरे बेटे हो
और मेरे पेट से पैदा हुए हो
तो मम्मी आपकी बेटी है
क्या वो भी आपके पेट से पैदा हुई है ?

मैं कहता हूँ —
मेरा पेट कुछ पैदा नहीं कर सकता
केवल खाता है
फिर वह छौना खूब खिलखिलाता है
और उसी रौ में
फिर थाप लगाता है

कहता हूँ मैं —
तुम्हें पीट दूँगा अब
डूब रहा दिन
भागो तुरत मच्छरदानी में
बच्चामार मच्छरों की अब है भरमार
तीस साल से धरे हाथ पर हाथ
बैठी है सरकार वाग्मी
और मन्त्रिपरिषद् वाचाल
हेहर टुच्चे साहब सूबा ठगवा बिगवा
कई-कई तो यह भी कहते हैं नालायक
अक्सर अगस्त में बच्चे मरते हैं
मुँह में उनके पड़ें घिनौने कीड़े
और जीभ गलकर गिर जाय
शेम-शेम हाय हाय !!

कहता है वह —
नाना एक बात कहकर
फिर आप बड़बड़ाते हैं बहुत देर तक
इससे क्या पाते हैं ?

कहता हूँ मैं —
तुम्हें पीट दूँगा अब निश्चित
भगो तुरत मच्छरदानी में
नानी भी अब नहीं तुम्हारी बचा पाएँगी तुम्हें
चलो उतरो छाती से मेरे
नहीं तो चटकना खाओगे

फिर कहता वह —
नानी तो कहती हैं
यदि आप हमें मारोगे
तो काँपेंगे हाथ आपके ऐसे ऐसे
चमकाता है
नहीं रोक पाता मैं अपनी हँसी
और हँसता जाता हूँ

भगो तुरत मच्छरदानी में
फिकिर नहीं अब
जीत चुके हो कई अगस्त
और जियो तुम लाख बरीस
लेकर मेरी उमर जिओ
हँसते और खेलते जीओ

पढ़ते, लिखते और समझते
सावधान रहना परिसर से
और कमीने लोगों से
कौए के बच्चों जितना चतुर बनो
समय बहुत आतातायी है
भगो तुरत मच्छरदानी में
चलो उतरो छाती से मेरे ।