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चार / प्रबोधिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'
Kavita Kosh से
कौन कहता है गरल मीठा नहीं होता!
गरल पीता साहसी सुकरात कोई
गरल पीता शंभू-सा उद्दात्त कोई
गरल क्या रड़ूए पियेंगे ? गरल क्या भड़ुए पियेंगे?
सिंह होता वह है जिसकी मूँछ में विष
अमर होता वह है जिसके कंठ में विष
अमिय रोगी के लिए है, अमिय भोगी के लिए हैं
वेदना जिसको नहीं वह क्या पिए!
वेदना जिसको नहीं वह क्या जिए!!
काश! कोई गरल को मेरी तरह पीता!
कौन कहता है गरल मीठा नहीं होता!
गरल जिसने पिया वह मर गया
गरल जिसने छुआ वह डर गया
कौन कहता है? था उसका लक्ष्य ही मारना
मरण के लक्षय वाले को,
अमिय से लाखों गुणा अच्छा कहेंगे
झूठ को झूठा कहेंगे सच को सच्चा कहेंगे
तुक मिलाना जानते तो आज मेरा नाम होता
कौन कहता है गरल मीठा नहीं होता!