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चावना / वाज़िद हसन काज़ी
Kavita Kosh से
म्हैं उडणी चावूं
इण छेड़ै सूं उण छेड़ै
जठै बाथां भरलै समंदर
इण आभै नै
म्हैं बधणी चावूं
इतरौ डीगौ
कै
हाथां सूं तोड़ लूं
तारा
अर भर लूं खूंजौ
म्हैं गमणी चावूं
रळ जाणी चावूं
बीज री गळांई
धरती मांय
कै बण सकूं अेक बिरछ
फैल सकूं घेर घुमैर
धरती रै चौफेर
पसार सकूं
हेत री छियां।