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चाहता तो हूँ मुक्त कर दूँ तुम्हें / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'

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चाहता तो हूँ कि
अब मुक्त कर दु तुम्हे
कविताओ के सिमित दायरे से
ताकि तुम उड़ सको खुद की
लम्बी उड़ान
बहुत सम्भव होगा कि
मन के पिंजरे से उड़ते शब्द
कर देते होंगे उद्देलित तुम्हारे मन को
ओर तुम हो जाती होगी
संभवतय परेशान
में खुद को नही देखना चाहता हूँ
तुम्हारी परेशानी का पितामाह
ईसलिए अब हो जाना चाहता हूँ,मैं खामोश
सदा-सदा के लिए
ताकि तुम फैला सको खुद के पँख
इस अनन्त आकाश में
लेकिन तुमको विदित हो
एक दिन तुम्हे ढूंढ ही लूँगा
शब्दो के बगैर भी