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चाहतें, प्यार, सदाचार न जाने देना / गिरिराज शरण अग्रवाल
Kavita Kosh से
चाहतें, प्यार, सदाचार न जाने देना
मन से अपने ये सरोकार न जाने देना
स्वार्थ ही स्वार्थ हैं दुनिया में यह माना लेकिन
दिल से तुम अपने मगर प्यार न जाने देना
इक भँवर है कि उठा आता है किश्ती की तरफ़
तुम मगर हाथ से पतवार न जाने देना
तुमको मालूम है आशा पे टिका है जीवन
अपने जीवन का यह आधार न जाने देना
एक इक पल है यहाँ क़ीमती, समझो इसको
एक भी पल कभी बेकार न जाने देना