भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाही आइ एहन रघुनन्दन / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रतियोगिता परीक्षा देलनि चुन्नू जखन अनेको खेप।
घडुछामे पकलहा आमपर सुतरि गेलनि ई तेसर ढेप॥
मेडिकलक बनलाह छात्र आ नाम लिखौलनि टाटा जाय।
भूखन भैया तहिएसँ सोचय लगला घाटाक उपाय।
सुच्चा सरिसौ तेल लगा कऽ नित्तह देथि मोंछ पर ताव।
बौआ केर मोल तँ बढ़बे करतनि, हमरो बढ़त प्रभाव॥
पाँच बरख धरि पड़त पुराबय करथि सभक लग एकरे चर्च।
चारि हजार सलाना निजगुत तकर अलावे पाकिट खर्च॥
एकसरमे भूखन भैया बैसल-बैसल मन मोदक खाथि।
मनसूबासँ आसिन मासक पाड़ा जकाँ मोटायल जाथि
बहरघराकेँ तोड़ि, एहिठाँ बान्हब पक्का एक दलान।
एकरा एना बनायब, ओकरा ओना करब से बनबथि प्लान॥
हस्ताक्षरक जगह पर अपने भने लगाबथु औंठा छाप।
मुदा पाँच बरखेक बाद सँ कहबौता डाक्टर केर बाप॥
जागलमे सोचथि से सोचथु, सुतलोमे एतबे सपनाथि।
गर्मी रहनि तते फुकने जे पूसो माघो मास भफाथि॥
देखबामे चुन्नू चन्ना सन आ दस बीघा आस्था-पात
आब हजार-बजारक गप की? पाँच लाखसँ कम की बात?
कनकछड़ी सन कनियाँ आनब आ विदाइमे मोटरकार।
घरमे बैसल टेलीवीजिन पर देखब सौंसे संसार॥
मनोरथक तँ पूल नमरि गान्धीक सेतु धरिकेँ टपिगेल।
स्वर्गक सीढ़ी लागल लगमे लागय लगलनि अपना लेल॥
धैर्य धारि, कछमछ करैत कहुना कऽ कटलनि पाँचो साल।
कन्यागतक घटक सब देथिन परिचय, जाथि लगौने टाल॥

x x x

दूनम्बर धन्धी समाजमेसँ क्यौ आबि गेलनि यजमान।
जे निधोख भय एहन काजलै बहबय टाका पानि समान॥
तुरत पठौलनि तार गामसँ.....‘‘ जहिना छी तहिना चल आउ।
मैयाँ अब-तब कय रहली तेँ आबि अपना मुँह कने देखाउ॥’’
चुन्नू टाटामे पढ़ैत छल, प्रगतिशील ततबा भय गेल।
कय देलकनि भूखन भैयाक बनाओल सबटा प्लाने फेल॥
युवक सभामे टका गनयबाकें कहने छल बड़का रोग।
ताही रोगेँ ग्रस्त करक हित पिता लगौने छलथिन योग॥
मैयाँ आङनमे अरिपन दय करइत छलथिन सब ओरियान।
अब-तब की करइत छथि जइते भेटि गेलनि प्रत्यक्ष प्रमाण॥
देखितहि भूखन भैया हुलसल बरियाती लै देल हकार।
जुटल लो, जुन्नू लगलनि जेना हँसेरी हो तैयार॥
कन्यागतक घरक कोड़ो खीचि जेना आनत सब लूटि।
साँझ होइत धरि गाम-गामसँ गेलथिन सकल कुटुम्बो जूटि॥
सभक बीच जा बजला चुन्नू-सुनथु समस्त समाजक लोक।
टका गनयबा पर कानूनन लागल छै सरकारी रोक॥
हमरे संग पढै़ छथि निर्धन मित्र, हमर छथि परम अभिन्न।
तनिक पिता के देखल कन्यादानक चिन्तासँ अति खिन्न॥
हुनक देखि दयनीय दशा भय द्रवित वचन हुनका दल देल।
करब विवाह ओतहि हम, सेहो मनमे दृढ़ निश्चय कय लेल॥
‘‘जखन धनुष तोड़ल बिनु पुछनहि मर्यादा पुरूषोत्तम राम।
तखन हमर निश्चय अनुचित नहि ‘‘कहि चुन्नू लै लेल विराम’’
पुनि बाजल-विद्या बल अर्जब, बेब पिताक मनोरथ पूरि।
मुदा टका गनबाय समाजक बीच करथु नहि हमरा दूरि॥
सुतक बात सुनि भूखन भैया खसला चारू नाल चितंग।
चुन्नू चलल विवाह करय लै मात्र चारि बरियाती संग॥
चाही आइ एहन रघुनन्दन करथि समाजक जे उद्धार।
पुत्र तथा पुत्रीक बीच पुनि रहि नहि सकय विषम व्यवहार॥