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चाहे जितनी दूर जाऊँ / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय
Kavita Kosh से
मैं चाहे जितनी भी दूर जाऊँ
मेरे संग चला आता है
लहरों की माला गुँथी
एक नदी का नाम-
मैं चाहे जितनी भी दूर जाऊँ।
मेरी आँखों की पलकों के
लिपे-पुते आँगन में चले आते हैं
अनगिनत क़तारों में
लक्ष्मी के पाँव।
मैं चाहे जितनी भी दूर जाऊँ