चाहे सब नखत बुतायँ, सोम ब्योम मा समायँ / सुशील सिद्धार्थ
चाहे सब नखत बुतायँ, सोम ब्योम मा समायँ
मुलु न तुम कह्यो कि राति है।
जी की लगन ना बुझाय, जौन दे गगन लचाय
उइकी भोर जगमगाति है॥
रोसनी लिखै तौ वा है जिन्दगी।
दे जियबु सिखै तौ वा है जिन्दगी॥
बिनु थके चलै तौ वा है जिन्दगी।
झूठ का खलै तौ वा है जिन्दगी॥
चलि परै तौ राह मा पहाड़ बनु कि बाघु होय
मुलु कहूँ तनिकु रुकै न बीच मा।
पाखु जो अंधेरु होय आंखि मा उजेरु होय
काफ़िला फंसै न काल-कीच मा।
आंधी सिरु झुकाइ देइ राह खुद बनाइ देइ
सागरन कि का बिसाति है।
जी की लगन ना बुझाय, जौन दे गगन लचाय
उइकी भोर जगमगाति है।
घाम मा तचै तौ वा है जिन्दगी।
मुलु घटा रचै तौ वा है जिन्दगी॥
सांच पर डटै तौ वा है जिन्दगी।
इंचु ना हटै तो वा है जिन्दगी॥
प्रीति कै गुलाल बनि प्रतीति पै निहाल होइ
धार लौटि देति सब गुमान की।
ग्यान कै मिसाल होइ त्याग कै मसाल होइ
जइसे राधारानी जइसे जानकी।
सब्द सब्द मा समाय किरन किरन झिलमिलाय
कालु उइते हारि जाति है।
जी की लगन ना बुझाय, जौन दे गगन लचाय
उइकी भोर जगमगाति है।
फूल जस झरै तौ वा है जिन्दगी।
सबका दुखु हरै तौ वा है जिन्दगी॥
यादि मा बसै तौ वा है जिन्दगी।
दर्द मा हंसै तौ वा है जिन्दगी॥
भूमि जल गगन पवन अगिनि का कर्जु दे उतारि
जो मिलै हियां हियैं लुटाइ दे।
जिन्दगिक जियाय जाइ जगु समूच पाय जाइ
अइस अपने आप का गंवाइ दे।
नीकि छाप छूटि जाय ई तना जो जसु कमाय
दुनिया देखि कै सिहाति है।
जी की लगन ना बुझाय जौन दे गगन लचाय
उइकी भोर जगमगाति है।
धार मा धंसै तौ वा है जिन्दगी।
ना कहूं फंसै तौ वा है जिन्दगी॥
आंबु जस फरै तौ वा है जिन्दगी।
प्रीति रस भरै तौ वा है जिन्दगी॥