चिंतन / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
एकात रहब भ' गेल लक्षण
मनुक्खक प्रयोजन-
पहिने सुर वा असुर
रहैत छल एकात चिंतनक लेल
हम सभ दुनू मे सँ नहि
तखन कोना एकांत-प्रेमी!
बुरहा- बुरही परिहास सँ
सन्ततिक उपहास सँ
अपरतिभ कोन दबने एकांत
पुरान विधवा वा विधुर
अपन स्मृतिक संग एकांत
बहुआसिन टीभीक संग एकांत
रहसी आ रभसी बीबीक संग एकांत
नेना नेटक संग एकांत
दीन पेटक संग एकांत
सभकेँ लागल एकान्तक रोग
नहि कोनो साधना वा योग
सभ कटैत सोग
विषयान्तर भोग
एकल परिवार
जे एसगरुआ से सरिपहु
जे पैघ से भौतिकताक सागर मे
कनक मंथनक लेल एकात!!!
अपन संतान आगाँ की सोचत?
तकर परवाहि नहि?
वृद्ध केँ माँथ पर हाथ रखने देखि
पुछलक बड़का समृद्ध बेटा
कथीक चिंता?
खूब धंगरि खाउ
स्पष्ट बजबाक हिम्मति नहि
मोन मे सोचि रहल छथि
बेटा ई चिंता नहि चिंतन थिक
दम्पति सभ संतान के समरूपे देखैछ
एकटा बनैछ त' ओकर अपन कर्म?
दोसर बिगड़ैछ त' माय-बापक धर्म?
बाह रौ दृष्टि!!!
अपने केँ रूप देब' मे सफल भेलहुँ
छोटका नहि बनि सकल
मुदा शक्ति सँ बेसी भक्ति
अर्थहीन आ साधनविहीन
ओकरा लेल चिंतन
एकरा चिंता कोना कहब?
शरीरक सम्पूर्ण भार मात्र पयर पर
ओ नहि कनैछ
हिया, पीठ की पेट की
ज्ञानेन्द्रिय धरिक बोझ उठौने
अनवरत काहि कटैछ
मुदा मोने मे
की सबल संतान पयर जकाँ
परिवारक भार नहि उठा सकैछ?
जकरा लेल अहाँ चोरि क' केँ
उगाही क' रहलहुँहें
की अंतिम काल मे
ओ संग रहत?
एखने सँ पछवरिया हवाक
रोग सँ ग्रसित भ'; गेल अछि
अहाँ केँ एक्के टा अछि
उपहासक बेरि
दोसरक आश नहि
अहाँ हमरे जकाँ दुखी रहब
करू चिंतन
आत्म मंथन
हम त' किछु नहि क' सकलहुँ
ओहि बुड़िबकहा लेल
मुदा ओ उपहास नहि करत
भुखले राखत मुदा आपकताक संग
अहाँ केँ सभ किछु अछैत
सभ दिन लखत क्रंदन
बाबन सचार
गमगम व्यंजन
भेंटत एकांत बसन
एक बेरि सोचु
करू हमरे जकाँ चिंतन
छोटको लेल किछु राखि दियौक
ओकरो दायित्व छैक
यौ आँखि त' छोट
बाट वैह देखबैछ
ओछ केँ नहि बूझी विकारी
बेर पडला पर वैह सकारी!!!!
की एकरा कहबैक चिंता?
भावक ई विशेष्य रूप “चिंतन “!!!!!