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चिट्ठी / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
चिट्ठी हूँ, चिट्ठी,
मैं चिट्ठी तुम्हारी,
लायी हूँ घर-भर को
ख़ुश-ख़बरी प्यारी।
मुनुवा की दीदी का
गौना हुआ है,
चाची के घर में
सलोना हुआ है।
ठीक हुई दादी की
लम्बी बीमारी,
चिट्ठी हूँ, चिट्ठी,
मैं चिट्ठी तुम्हारी!
बंटी घुटनों–घुटनों
चलने लगा है,
दादा! दादा! दादा!
कहने लगा है।
ख़बरों की बन्द हुई
लो, अब पिटारी,
चिट्ठी हूँ, चिट्ठी,
मैं चिट्ठी तुम्हारी।