चिट्ठी / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
आइ बहुत दिन के बाद
अटईची में
मिलल एगो चिट्ठी
पढ़ली त
मन देर तक रहल खिलल
उहे भाव में डूबल रहली
बहुते देर तक
तब हमर बेटी पूछलक-
कथी पढ़इत हतऽ?
त हम कहली-
ई चिट्ठी हए
जे हम्मर नाना जी हमरा
हम्मर छात्रावास में भेजले रहथ
लिख क
ई चिट्ठी पढ़ला से
हमरा ऊ सब बात इआद हो गेल
जे ई चिट्ठी मिलला आ पढ़ला के बाद
होएल रहे
ई चिट्ठी एगो धरोहर हए
जेकरा पढ़-पढ़ क
हम दुनिया के साथे चले के सीखले रही
तब हम्मर बेटी फेनू पूछलक-
कि अब ऊ चिट्ठी काहेला न अबइअऽ?
त हम कहली-
कि अब हो गेल हए मोबाईल के जमाना
जेकरा से कोनो बात
जखनी मन भेल क लेली
आऊर बात उहें खतम
ओईसे
न मन में कोनो विचार अबइअऽ
न कोनो भाव
ई मोबाईल
चिट्ठी के महत्व एकदमे मेटा देलक
अही लागी
तू न जनइत हतऽ
ई चिट्ठी के बारे में
ई चिट्ठी अप्पन दिल के बात
दोसर तक पहँचावें के रहे माध्यम
तब हमरा लागल कि-
नएका लरिका सबके बतावेला
अब चिट्ठियो के
गहना-गुड़िया जइसन सजोग क
रखे के परत!