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चिन्ता से नहीं चिन्तन से / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
उदासी से रोज़ मिलो
और बातें करो उससे तो वह
ख़ुशी के मुक़ाबले ज़्यादा
मज़ा देने लगती है
और तुममें वह ख़ुशी के मुक़ाबले
ज़्यादा दिलचस्पी लेने लगती है
उसके घनिष्ठ हो जाने पर अपने से
देखोगे तुम कि
हो गए हो तुम ग़ुम
और तुम्हारे आसपास और भीतर
छा गई है एक शान्ति
ख़ुशी की भ्रान्ति और हलचल और दौड़धूप
या तो समाप्त हो गई है,
बन्द हो गई है
या वह तुम्हारे आसपास से भीतर
और भीतर से आसपास आ-जा कर
एक परिपूर्ण छन्द हो गई है ।