भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिन्वड़्या जी / तोताराम ढौंडियाल 'जिग्यांसु'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरि र् वट्यूं फरि लथ्थी न मारा!!
हमरा भाग हि फुटिगीं!
हम घास अर् झुलमुन्डूं का "डरौंण्याँ" छाँ; वो भल्लिकै पछ्याँण्गीं!!
चखुला त् इतगा बिचट ह्वैगीं कि-'चींणा' छौंक्ला काटि-काटिकि; खांणू बि म्यारै मुन्डम् अन्दीं!
मेरि चौकिदरि ल् खुश ह्वैक् सि; दुर्बा दिन्दीं!!
ठिक्क मुन्डम् बीटि बि जन्दीं!!