चिहुँकल मन / नरेश कुमार विकल
एकराति चिहुँकि हम गेलहूँ सखि
देखलहुँ सपना मे अजीब बात।
केओ आबि खाटपर बैसल छथि
धोरे सँ धरैछ ओ हमर हाथ।
हम छलहुँ तखन सूतलि निभेर
छल अस्त्र-वस्त्र कें नहि ठेकान
आँचर जमीन मे सट्टल छल
छल लाज पर्द कें नहि निशान
सभ केश मुँह पर राखल छल
बादर कें जहिना बीच चान
दूहू ठोर लाल सँ रांगल छल
खाकऽ सुतलहु दू बीड़ पान
ठेहुना सँ ऊपर साड़ी छल
ओ ताकि रहल गरमीक शेष
आंगी ‘स्लेव लेश’ छल हमर
नहि जानि ओकर छल की उदेश
किछु आहटि पाबि फूजि गेल आँखि
देखलहुँ ओ धयने छथि हाथ
आँखि जँ फोलल हुनका चीन्हि
कहलियैन्हि ई बड़ अघलाह बात
व्यवहार हुनक की कहु सखी
दुश्मन जेना हम छलहुँ हुनक
दूहू हाथ हमर देलनि मसोड़ि
फूटि गेल सभ चूड़ी खनक
जब हाथ हुनक आगू बढ़ल
चिहुँकलहुँ हम कहि गे माय
एतबो पर जँ ओ नहि मानल
हमर तँ तन मन गेल हेराय
करितहुँ एहन की अवसर मे
सखी तखन छल कहू की उपाय
पनघट पर प्यास नहि बुझि सकय
एहि कहि देलनि ओ डर भगाय।