भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चींटियां / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जैसे बनाती हैं सड़कें
पानी को पार करती हैं एकजुट
पहाड़ों पर चढ़ती हैं
युद्ध करती हैं अपनी सेना के साथ

अनाधिकार घुसने नहीं देती
किसी को अपने इलाकों में

कर सकती है चीटियां जैसा
कर सकते हैं हम भी

देखो अमरीका घुसा आ रहा है जबरन