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चींटी का मरना / असंगघोष
Kavita Kosh से
अपनी आँखों
मैंने देखा
मकड़ी को
चींटी के आगे
चींटी के पीछे
चींटी के दाएँ
चींटी के बाएँ
चींटी के ऊपर
फुर्ती से जाला बुनते
इस तरह दस गुना
वजन उठाने वाली
चींटी को खुद से
तिगुनी बड़ी मकड़ी के
जाले में बेबस हो
फँसते देखा
मकड़ी को खाते देखा
चींटी को मरते देखा
आखिर मैं
क्यों देखता रहा?
चींटी को रुकते
मकड़ी को जाला बुनते
चींटी को जाले में फँसते
मकड़ी को खाते
चींटी को मरते।