चुप्पा साधक / शम्भुनाथ मिश्र
हम बड़का चुप्पा साधक छी,
आ लोक बुझय हमरा बाधक
नहि हम ककरो लय बाधक छी
हम बड़का चुप्पा साधक छी।
मैथिलीक ठठ्ठमे गाम हमर
कहबै छी गामक जमिन्दार
एखनहुँ अछि सबतरि रोब-दाब
हमरेपर सब दारोमदार
सापक खातिर सपनौरे छी,
व्यापकलय एखनहुँ व्यापक छी।
अछि लिखल हमर साहित्य बहुत
नहि सब प्रकाशमे आयल अछि,
अछि कुकुर-कटाउझमे लागल,
सब अपनहिमे बौआयल अछि
छातीपर मूँग दरड़बालय धरि,
एखनहुँ हम बड़ काजक छी।
अछि लिखल पचीसो उपन्यास,
दसटा संग्रह कवितेक होयत,
यदि सब निबन्ध एकत्र करी,
डेढ़ो सयसँ उपरे होयत
जानी नहि ढोंढ़क मन्त्र भने,
माथा धरि देने दराधक छी।
हो काम शास्त्र वा काव्य शास्त्र
नहि कोन शास्त्र हमरा धाँगल,
धरि केहन-केहन विद्वानहुँ सब,
हमरासँ रहइत छथि भागल
नहि लोक दिअओ हमरा मोजर,
हम बहुतोकेर अभिभावक छी।
हमरा नहि क्यौ लऽ जाइत छथि,
आ हमने कतहु लजाइत छी
अछि सब बुझैत हमरे बागड़
तेँ हम नहि कत्तहु जाइत छी
छी हमहूँ मुँहथरिये पर केर,
नहि चर-चाँचर वा बाधक छी
हम बड़का चुप्पा साधक छी।