चुप्पी की गुम्बज / रवि प्रकाश
ये उल्लू
जो आपकी,हमारी चुप्पी की गुम्बज पर
बैठ गया है !
उसका मुंह पश्चिम की तरफ है
और उसका पिछला हिस्सा
आपके हमारे पेट पर है !
ये जो कुछ भी वहां खाता है
उसकी विष्ठा
आपके हमारे पेट पर गिराता है!
ये जो जनतंत्र ,लोकतंत्र ,प्रजातंत्र की विष्ठा ,
को इसने हमारे पेट में रोपा और ईमान पर थोपा है,
दरअसल इसे उसने वहीँ खाया है
और इसकी विष्ठा को हमारी आत्मा पर गलाया है !
लेकिन कहीं न कहीं कुछ है,
जो इन उल्लुओं ने अपनी कोंख में दबा रखा है,
और ट्रिकल डाउन का कोहराम मचा रखा है !
मैं अक्सर इन्हें खोजता हूँ
लेकिन ये महज संयोग ही नहीं बल्कि साजिश है
कि जब यहाँ दिन होता है
तो वहां रात होती है
और हमारी हर रात लखना डंडा पटकते हुए,
चिल्लाते हुए,चरती गायों और चोरों से
सावधान करता है !
और काका खरखराती फसल के खिलाफ आग से !
बावजूद इसके
अन्न पूजन के दिन जब काका ने
गेहूं के दुद्धी दाने
गुंड और घी मलकर प्रसाद बनाया
और लक्ष्मी के सामने चढ़ाया, तो मैं देखकर दंग था
लक्ष्मी उल्लू पर सवार थी,
उसका मुंह पश्चिम की तरफ था
और काका की जिद थी,
उसका मुंह का पश्चिम की तरफ रहने दे
नहीं तो अपसगुन होगा !