भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुप्पी / गौरव गुप्ता
Kavita Kosh से
अगर
उग आया है शिकायतों का पहाड़
तो किसी ज्वालामुखी की तरह उसे फट पड़ने की जगह दो
अगर बातों का बादल घुमड़ रहा है मन के ऊपर
तो बरस जाने दो
मैं था
मैं हूँ
मैं रहूँगा
पर चुप्प मत रहो, मेरी दोस्त
शिकायतों की आग जलायेगी मेरी चमड़ी
पर मैं तब भी जीवित रहूँगा
बातों की बारिश में भीग बीमार पडूंगा
पर हृदय धड़कता रहेगा
पर तुम्हारी चुप्पी,
तुम्हारी चुप्पी किसी नुकीले चाकू की तरह धसती चली जाती है मन पर
रिसता रहता है खून धीमे धीमे
और मैं मर रहा होता हूँ
मेरी इस मृत्यु यात्रा को स्थगित करो, मेरी दोस्त
मुझे आवाज़ दो
चुप्प मत रहो।