भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुप्पी / संतोष कुमार चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
चुप्पी
एक मानचित्र है
जिसे बॉटा जा सकता है
मनमाने तरीके से
लकीर खींच कर
चुप्पी
एक गोताखोर की गहरी डुबकी है
उफनते समुद्र में
जिसके बारे में नहीं बता सकता
किनारे खड़ा कोई व्यक्ति
कि अचानक कहाँ से
निकल पड़ेगा गोताखोर
चुप्पी
किसी डायरी का कोरा पन्ना है
जिस पर मन की स्याही से
की जा सकती है
किसिम किसिम की चित्रकारी
सहमति असहमति के बीच की
एक महीन आवाज है चुप्पी
लेकिन साथ ही
निर्बल का एक अचूक और अबोला
हथियार भी है चुप्पी
जिसमें मन ही मन
गरियाता है
लतियाता है
वह किसी भी दबंग को
हींक भर