भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुप-चुप-चुप / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
बड़े अगर बोलें तो भैया,
चुप-चुप-चुप !
चुप-चुप-चुप !
कान खिंचाई बच जाएगी ।
मार-पिटाई बच जाएगी ।
व्यर्थ लड़ाई बच जाएगी ।
चुप-चुप-चुप !
चुप-चुप-चुप !
बड़े सदा रहते गुस्से में ।
हँसी कहाँ उनके हिस्से में ?
डाँट-डपट पूरे किस्से में ।
चुप-चुप-चुप !
चुप-चुप-चुप !