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चुप न रहती तो क्या करती ! / रश्मि प्रभा

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चुप न रहती तो क्या करती
बोलती तो भारतीय नारी के पद से जाती !
...
तो चुप्प रही
आँखें प्रभु की बनायीं सीमा से
अधिक फ़ैल गईं !
दिमाग में टकराते पत्थरों से जो आग निकली
उससे चिंतन का चूल्हा जलाया
जो खिचड़ी खुद चढ़ गई थी
उसमें आश्चर्य मिलाया
...... कोई सूत्र नहीं पकड़ में आ रहा था
हंसूं रोऊँ या धिक्कारूं
कुछ समझ नहीं आ रहा था
ओह ....
ऐसे में कोई काम कितना मुश्किल होता है न !

भूमिका के मध्य आपकी गति कुछ और न हो जाए
किस्सा कोई और हो न जाए
उससे पहले यह सत्य बयां कर दूँ -

अपरिचित सा परिचय ( नाम रहने दीजिये )
आभासी रिश्ता
उनका फ़ोन आया
मुझसे उनकी सोच का आदान - प्रदान
इकतरफा हुआ ...
मुझे अपनी प्रश्नवाचक भारतीयता थी प्यारी
तो निरुत्तर
बस ह्म्म्म की मुद्रा में रही ....

बड़े आक्रोश में थे वे सज्जन
बता रहे थे किसी को दुर्जन
कुछ इस अंदाज में -
.....
" उन्होंने एक हास्य कविता लिखी है
बोलिए स्त्री को क्या समझा है !
कहते हैं -
" प्रेम की बोली बोलकर पति से पत्नी ने
जेब मिनटों में खाली की ...."
स्त्री अर्धांगिनी होती है
अन्नपूर्णा ....
भारतीय स्त्री को पति मारते मारते फोड़ भी दे
तो वह घर से नहीं निकलती
पति का बुरा नहीं चाहती
उसकी आयु की कामना में
निर्जला उपासना करती है
और ये ..... "

दयनीयता को यूँ हवा में भारत रत्न का सम्मान मिला
सच बोलने की कोशिश पर
चुप्पी का पट्टा मढ़ा
क्षत विक्षत स्थिति को
राष्ट्र गौरव मिला ...
मैं चुप न रहती तो क्या करती !!!