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चुप न रहें / संजीव वर्मा ‘सलिल’

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चुप न रहें
निज स्वर में गाएँ
निविड़ तिमिर में दीप जलाएँ

फिक्र नहीं
जो जग ने टोका
पीर बढ़ा दी हर पग रोका
झेल प्रबलतूफाँ का झोंका
मुश्किल में मुस्कायें

कौन
किसी का सदा सगा है?
अपनेपन ने छला-ठगा है
झूठा नाता नेह पगा है
सत्य न यह बिसराएँ

कलकल
निर्झेर बन बहना है
सुख-दुःख सम चुप रह सहना है
नहीं किसी से कुछ कहना है
रुकें न, मंजिल पाएँ