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चुप रहने वाला आदमी / कुँअर रवीन्द्र

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मैं जब भी सहज ढंग से
चुपचाप
बैठ जाता हूँ
वे मुझे हारा हुआ मानकर
खड़े हो जाते हैं

खड़े होने के बावजूद
वे थरथराते, कँपकँपाते रहते है
इस भय से कि
कहीं यह चुपचाप बैठा आदमी
फिर से खड़ा तो नहीं हो जाएगा

क्योंकि वे जानते है
जिस दिन यह चुप रहने वाला आदमी
खड़ा हो जाएगा
सारी सत्ताएँ,
सारी हवाई विचारधाराएँ
कुत्ते की उठी हुई टाँग के नीचे होंगी

इसलिए वे जल्द से जल्द
झूठ के बीज बो देना चाहते हैं