भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुम्बन / नेहा नरुका

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं आज शाम को बिलकुल फ़्री हूँ, आओगी मिलने ?

मैंने चाची से मिन्नतें की
वो जानती थीं, तुम मेरे होने वाले शौहर हो
तो मान गईं

मैंने पर्स उठाया, ठीक-ठाक कपड़े पहनें, ऑटो बुक किया और पार्क के गेट पर पहुँच गई
तुम गेट पर ही खड़े थे ...

तुम्हारे बगल मैं एक मूँगफली बेचने वाला दस-बारह साल का लड़का खड़ा था
जो तुमसे बार-बार मूँगफली ख़रीदने का निवेदन कर रहा था
मेरे कहने पर तुमने 10 रुपये की मूँगफली तुलवा ली

हम पार्क मैं बैठे रहे
बैठे-बैठे मूँगफली छीलते रहे

मैं मुस्कराती रही , तुम हँसते रहे
मैं क़िस्से सुनाती रही,तुम क़िस्से सुनते रहे
फिर अचानक से तुमने मुझे चूम लिया
मैं अँगुली से मिट्टी खोदने लगी...

फिर न जाने किस उम्मीद में, मैं उठकर ओट में आ गई
फिर हम दोनों एक-दूसरे को आलिंगन में भरकर चूमने लगे

तभी एक लड़का आया
उसके चेहरे पर घृणा का भाव था —
'ये सब यहाँ नहीँ चलेगा'

तुम सकपका गए
मैं डर गई...
तुमने लड़के से कहा — 'सॉरी'

पाँच मिनट पहले मुझे पता चला था — 'चुम्बन किसे कहते हैं'
पाँच मिनट बाद मुझे पता चला — 'चुम्बन लेना ज़ुर्म है'

मैं मुण्डी नीचे झुकाए पार्क से बाहर आ गई...
मेरे बदन पर कपड़े थे पर यूँ लगा जैसे मैं बिलकुल नंगी हूँ

मेरे कानों में तुम्हारी कोई आवाज़ नहीँ आई...
महीनों तक कैसेट की तरह कानों में बस यही बजता रहा —
ये सब यहाँ नहीं चलेगा...

तुम फ़ोन पर फ़ोन करते रहे
मैं फ़ोन काटती रही...

तुमने मैसेज किया —
'सॉरी ! हम जल्दी शादी कर लेंगे'

फिर हमारी शादी हो गई
हमारे हिस्से में एक बिस्तर और एक छोटा-सा कमरा आ गया

काम से थके-ऊबे हम कमरे में आते तो मैं रोशनी बुझा देती
आहिस्ता-आहिस्ता तुम्हारे होंठ मेरे होंठो की तरफ़ बढ़ते
तभी वह लड़का मेरे कानों में जोर से चीख़ता —
ये सब यहाँ नहीँ चलेगा!

उस अनजान लड़के ने सिर्फ़ एक वाक्य बोलकर
उस एहसास को कुचल दिया
जिससे मैं ज़िन्दगीभर चुम्बन लेती और देती...