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चूमने चले नज़र आसमान की देख / सांवर दइया
Kavita Kosh से
चूमने चले नज़र आसमान की देख।
अब हिल रही नींव मकान की देख।
कौन सुनेगा घायल चिड़िया की पुकार,
सभी को पड़ी है अपनी जान की देख!
सच कहने वालों का सिर क़लम हो रहा,
यही है उनके वक़्त की बानगी देख।
हमारी तकलीफ़ों का जिक्र करे कौन,
मंच पर जम रही बातें खानगी देख!
किसी सूरत में न बचेंगे महल उनके,
खुल गई है अब आंख तूफान की देख!