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चेतावनी (भक्ति) / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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जननी सुत बंधु सुता सुत संपति मीत महाहित संतति जोई।
आवत संग न संग सिधावत, फांस मया परि नाहक खोई॥
केवल नाम निरंजन को जपु, चारि पदारथ जाहिते होई।
बूझि विचारि कहै धरनी, जग कोइ न कौहुक संग सगोई॥26॥