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चेरिया गे हम जैबो केदली के बनमाँ, जहाँ रे मिले औखद हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राजा ओषधि लाने जंगल जाते हैं। उसे पिसवाकर सभी रानियाँ पीती हैं और निश्चित समय पर सबको पुत्र प्राप्ति होती है। राजा खुशी में सब कुछ लुटा देने को उद्यत हैं। कैकेयी रानी सौरगृह से ही उन्हें कहती है कि राजा सोच-समझकर लुटाना। कुछ भरत के लिए भी रखना।
इस गीत में राम-वनवास की घटना की पृष्ठभूमि में जन-मानस द्वारा कैकेयी का विरोध दिखलाया गया है।

चेरिया गे हम जैबो केदली के बनमाँ, जहाँ रे मिले औखद<ref>ओषधि</ref> हे॥1॥
उहमाँ से लैलन राजा औखद, चेरिया हाथ दे देलन<ref>दे दिया</ref> हे।
चेरिया रगरी रगरी पीसै औखद, कोसिला रानी पीसाबै हे॥2॥
एत घोंट<ref>घूँट</ref> पियलन कोसिला रानी, दोसर घोंट सुमितरा रानी है।
ललना रे, सिलोटी धोई पियलन कंकइ रानी, जनमक<ref>जन्म से</ref> बाँझिन हे॥3॥
कोसिला के भेलैन सिरी रामचंदर, कंकइ भरथ भेलैन हे।
ललना रे, सुमितरा के भेलैन लछुमन, तीनों जीब गरभ सै<ref>गर्भवती</ref> हे॥4॥
आगे आगे ऐलन दगरिन, तेकर पीछे बाभन हे।
ललना रे, तेकर पीछेऐलन बलमुआँ, त तीनों घर सोहर हे॥5॥
सोनमा लुटैबै सोनोली<ref>सोने या किसी धातु का बना एक निश्चित माप का पात्र-विशेष</ref> भरी, रुपबा पसेरी भरी हे।
ललना रे, समुचे अजोधा लुटैबै, तीनों घ्ज्ञरबा सोहर हे॥6॥
सोइरी से बोलै कंकइ रानी, सुनु राजा दसरथ हे।
ललना रे, थोड़े-थोड़े अवध लुटाऊँ, कुछु भरथो लागि राखि क हे॥7॥

शब्दार्थ
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