भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चे कमाण्डेण्ट / निकोलस गियेन / राजेश चन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यद्यपि बुझा दिया है तुमने
अपना आलोक
तब भी म्लान नहीं हुआ
वह थोड़ा-सा भी ।
एक अग्नि अश्व ने
सम्भाल रखा है
तुम्हारी गुरिल्ला प्रस्तर-प्रतिमा को
सिएरा की हवाओं और
मेघों के बीच ।

हालाँकि
अब भी
मौन नहीं हो तुम

भले ही वे जलाते हैं तुमको
दफ़्न कर देते हैं ज़मीन के अन्दर,
वे छिपा देते हैं तुम्हें
किसी क़ब्रिस्तान में,
जंगल में, पठारों में,

पर वे रोक नहीं पाते
तुम्हें ढूँढ़ने से हमें
चे कमान्डेन्ट, दोस्त !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र