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चैत की रात का गीत / मोहन अम्बर

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चैती की चांद-रात, चिन्ता का जनम हुआ।
आँधी से डर-डर कर, तरूओं से काग उड़े,
बस्ती के लोग सभी, ऐसे में जाग पड़े,
प्राणों से प्राणों तक बिजली की गति जैसी मायूसी दौड़ गई,
चर्चा जब फैल गई यह तो अपशगुन मुआ,
चिन्ता का जनम हुआ।
बच्चों को प्यास लगी, बाबा तक ख़बर करी,
बाबा ने पास फटे, बिस्तर पर नज़र करी,
अनतैरा डूबे ज्यों घुटन-घुटन पानी में ऐसा वह डूब गया,
रक्त हीन हल्दी-सी पत्नी का बदन छुआ,
चिंता का जनम हुआ।
डंड़ी का तोल-मोल फसलों को मार गया,
इस पर भी बिटिया की शादी का भार नया,
कर्ज बढ़ा मरूथल को रेती के ढेर-सा उम्र घटी चंदा-सी,
बीड़ी के माध्यम से बहुत पिया दुखन धुआँ,
चिन्ता का जनम हुआ।