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चैत में बवण्डर / कमलेश

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चैत में बवण्डर
खेतों की मिट्टी उड़ा ले जा रहा है ;
दुपहर में ही भरने लगा है
आसमान में अन्धकार ;
फेंकरने लगी हैं बिल्लियाँ
घरों से निकल कर ;
सिवान में स्यार हुआँ-हुआँ करते हैं ।

भाग रहे हैं ढोर
वन की ओर
आसमान की ओर मँह उठा
रम्भाती है गाय
बिलगता बछेड़ा
चुप हो जाता है ।

कोई कहर नहीं आता
हो जाता शान्त धीरे-धीरे यह उत्पात ।
केवल खलिहान में पड़ी फ़सल में
गेहूँ का दाना
काला पड़ जाता है ।