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चैत / यात्री
Kavita Kosh से
पछवा सिहकए
सूरज दमकए
पाकल सुक्खल रब्बिक छीमड़ि बालि
मेही सुरमेँ बजबए मने सितार
दूरहिँ सँ चकचक करैत अछि चैतक खेत - पथार
डोला - लोलाकँ’ नमहर - नमहर आङुर
सहिजन सहजहिँ दइ छनि हरिअर सिगनल-
आबथु आब निदाघ
चाटथु माटिक सत्त
सुरकथु पानिक प्राण
पछबा सिहकओ, सूरज दमकओ
चैतक धरतीकेँ चाही बस वैसाखी शृंगार