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चौदह / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'
Kavita Kosh से
माँग रही अनमोल जवानी
भारत माँ वीरों से
जिसे भुजाओं पर गौरव है, जिसके उर में शान भरा है
वो दें, कायर की मत पूछो, जिस उर में तूफान खड़ा है
प्राण माँगती भारत माँ
हँस वैसे रणधीरो से
हाँ! हाँ! प्यारे वही जवानी! जिसको दुल्हन ने दुलराया
रे सुहाग की रात छोड़ दी! जागो प्यारे दुश्मन आया
यह सुहाग! सौभाग्य किन्तु
वह विन्ध जाना तीरों से
एक बूँद भी खून गिरा यदि शरहद पर कायर का
अरे! हार निश्चय तब मानो भारत बहादुर का
इसीलिए कुछ काम नहीं लो
कायर शरीरों से
बहे खून तो कह दो प्यारे! खून नहीं है, पानी
समझ पसीना उस पोंछ दो रे अलस्त जवानी
माँग रही है मुझे आज दो
भारत माँ वीरों से