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चौपट कविराय की कुण्डलियाँ / कांतिमोहन 'सोज़'

तब तक मुझे मालूम न था कि अटलजी (अटलबिहारी वाजपेयी) भी इस उपनाम से कुण्डलियाँ लिखते हैं।

1.

आज़ादी के मूल्य का कैसे करूँ बखान
जो आज़ाद न हो सकें वे नर जन्तु समान
वे नर जन्तु समान जेल में धरे बिराजें
कम्यूनिस्ट कहें नौलखे घर में साजें
जनता चौपट ग़द्दारों को विजय दिला दी
जय भारत सरकार न दी इनको आज़ादी ।।

2.

लालबहादुर शास्त्री भारत माँ के पूत
राजमहल में वास कर रहे निपट अवधूत
रहे निपट अवधूत फिरैं हैं मारे-मारे
आज रूस कल बर्मा परसों टीटो तारे
कह चौपट कविराय भले थे लाल जवाहर
उनसे बढ़कर निकले अपने लालबहादुर ।।

3.

महंगाई पनपे मनौ कन्या होय सुवाम
नज़र न लग जाए कहीं भली करें श्रीराम
भली करें श्रीराम अयोध्या होय न सूनी
बढ़ें क़ीमतें रात चौगुनी दिन को दूनी
कह चौपट कविराय सुनो हो मेरे भाई
वे नर जाएँ स्वर्ग जिन्हें मारे महंगाई ।।

4.

भूखे रहना आज है सबसे बड़ा सुकर्म
सब ग्रन्थों का सार है सब धर्मों का मर्म
सब धर्मों का मर्म व्रती बनना है भारी
पाक-चीन ने कर ली है भारी तैयारी
कह चौपट कविराय देश हित सब कुछ सहना
भारत माँ के वीर सपूतों भूखे रहना ।।

5.

पट्टी बाँधो पेट से आँखें कर लो बन्द
फिर नेता-माहात्म्य के पढ़ो मनोहर छन्द
पढ़ो मनोहर छन्द जयति जनरक्षक नेता
परम कृपामय एकबारगी प्राण न लेता
चौपट बोलें निशि-दिन नेता को आराधो
आँखें कर लो बन्द पेट से पट्टी बाँधो ।।

6.

जनता-जनता सब कहें नेता कहे न कोय
एक बार नेता कहे तो दुख काहे को होय
दुख काहे को होय तुरत मिल जाए परमिट
मन्त्र मिले झट रंग बदलो चकराए गिरगिट
कह चौपट कविराय सुनो हो मेरे सन्ता
नेता नेता कहो कहो मत जनता जनता ।।

7.

जो मेरी माने सखा कर नेता का संग
नेता ऐसा चाहिए जो हो परम दबंग
जो हो परम दबंग करे ग़लती फिर जूझे
पंगु होय पर चले अन्ध हो फिर भी सूझे
बात बने जब नेता पूरे और तू ताने
चरण पकड़ ले नेता के जो मेरी माने ।।

1965