1.
मस्तियाँ दिल में जगाने को चला
ज़िंदगी अपनी बनाने को चला
शेख जी, तुम हाथ मलते ही रहो
रिंद हर पीने- पिलाने को चला
2.
क्या नज़ारे है छलकते प्याला के
क्या गिनाऊँ गुण तुम्हारी हाला के
जागते-सोते मुझे ऐ साक़िया
ख्वाब भी आते हैं तो मधुशाला के
3.
साक़िया तुझको सदा भाता रहूँ
तेरे हाथों से सुरा पाता रहूँ
इच्छा पीने की सदा ज़िन्दा रहे
और मयख़ाने तेरे आता रहूँ
4.
देवता था वो कोई मेरे जनाब
या वो कोई आदमी था लाजवाब
इक अनोखी चीज़ थी उसने रची
नाम जिसको लोग देते हैं शराब
5.
ज़िन्दगी है, आत्मा है, ज्ञान है
मदभरा संगीत है औ' गान है
सारी दुनिया के लिए ये सोमरस
साक़िया, तेरा अनूठा दान है
6.
मधु बुरी- उपदेश में गाते हैं सब
मैं कहूँ छुप-छुप के पी आते हैं सब
पी के देखी मधु कभी पहले न हो
खामियाँ कैसे बता पाते हैं सब
7.
जब चख़ोगे दोस्त तुम थोड़ी शराब
झूम जाओगे घटाओं से जनाब
तुम पुकार उट्ठोगे मय की मस्ती में
साक़िया, लाता- पिलाता जा शराब
8.
जब भी जीवन में हो दुख से सामना
हाथ साक़ी का सदा तू थामना
खिल उठेगी दोस्त तेरी ज़िन्दगी
पूरी हो जाएगी तेरी कामना
9.
बेझिझक होकर यहाँ पर आइए
पीजिए मदिरा हृदय बहलाइए
नेमतों से भरा है मधु का भवन
चैन जितना चाहिए ले जाइए
10.
मैं नहीं कहता पियो तुम बेहिसाब
अपने हिस्से की पियो लेकिन जनाब
ये अनादर है सरासर ऐ हुज़ूर
बीच में ही छोड़ना आधी शराब
11.
कौन कहता है कि पीना पाप है
कौन कहता है कि यह अभिशाप है
गुण सुरा के शुष्क जन जाने कहाँ
ईश पाने को यही इक जाप है।
12.
नाव गुस्से की कभी खेते नहीं
हर किसी की बद्दुआ लेते नहीं
क्रोध सारा मस्तियों में घोल दो
पी के मदिरा गालियाँ देते नही।
13.
बेतुका हर गीत गाना छोड़ दो
शोर लोगों में मचाना छोड़ दो
गालियाँ देने से अच्छा है यही
सोम-रस पीना-पिलाना छोड़ दो
14.
प्रीत तन-मन में जगाती है सुरा
द्वेष का परदा हटाती है सुरा
ज़ाहिदों, नफ़रत से मत परखो इसे
आदमी के काम आती है सुरा
15.
बिन किए ही साथियों मधुपान तुम
चल पड़े हो कितने हो अनजान तुम
बैठकर आराम से पीते शराब
और कुछ साक़ी का करते मान तुम
16.
ज़ाहिदों की इतनी भी संगत न कर
ना-नहीं की इतनी भी हुज्जत न कर
एक दिन शायद तुझे पीनी पड़े
दोस्त, मय से इतनी भी नफ़रत न कर
17.
दिन में ही तारे दिखा दे रिंद को
और कठपुतली बना दे रिंद को
ज़ाहिदों का बस चले तो पल में ही
उँगलियों पर वे नचा दें रिंद को
18.
पीजिए मुख बाधकों से मोड़कर
और उपदेशक से नाता तोड़ कर
ज़िन्दगी वरदान सी बन जाएगी
पीजिए साक़ी से नाता जोड़कर
19.
मधु बिना कितनी अरस है ज़िन्दगी
मधु बिना इसमें नहीं कुछ दिलक़शी
छोड़ दूँ मधु, मैं नहीं बिल्कुल नहीं
बात उपदेशक से मैंने ये कही
20.
मन में हल्की-हल्की मस्ती छा गई
और मदिरा पीने को तरसा गई
तू सुराही पर सुराही दे लुटा
आज कुछ ऐसी ही जी में आ गई
21.
खोलकर आँखें चलो मेरे जनाब
आजकल लोगों ने पहने है नकाब
होश में रहना बड़ा है लाज़िमी
दोस्तों, थोड़ी पियो या बेहिसाब
22.
ओस भीगी सी सुबह धोई हुई
सौम्य बच्चे की तरह सोई हुई
लग रही है कितनी सुन्दर आज मधु
मद्यपों की याद में खोई हुई
23.
मस्त हर इक पीने वाला ही रहे
ज़ाहिदों के मुख पे ताला ही रहे
ध्यान रखना दोस्तों इस बात का
नित सुरा का बोलबाला ही रहे
24.
क्या निराली मस्ती लाती है सुरा
वेदना पल में मिटाती है सुरा
मैं भुला सकता नहीं इसका असर
रंग कुछ ऐसा चढ़ाती है सुरा