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चौमुख जोत जले / कुमार रवींद्र

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घर दमके
उजले आँगन में
     चौमुख जोत जले
 
सूरज-चंदा खड़े दुआरे
गौरा मांग भरे
फूली-फूली फिरे बहुरिया
चौखट दीप धरे
 
भरे कोठारे
धूप-छाँव से
     पिछले पुन्न फले
 
अम्मा-बाबू की असीस है
देवी के जापे
अँजुरी सरसों
हुए बरोठे सतिये के छापे
 
तुलसी मैया
पुरें मनौती
       सारे कष्ट टलें