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छँट गए बादल / इवान बूनिन
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छँट गए बादल,
नीलाकाश झलक उठा ऊपर
वासन्ती दिन अप्रैल का यह,
लगता है निराला
रूखा-सूखा-सा वन है,
रंग उसका भूरा-धूसर
गिरे है छाँह धरती पे,
जैसे मकड़ी का हो जाला
हवा चले है मनभावन,
देवदार पत्ते खड़काता
लगा रेंगने वन में सूरज,
रंग बैंजनी झलकाता
छिपा रहा बिल में अपने जो,
सर्प सुप्त सारे जाड़े
चितकबरा रूप अपना वह,
अब सबको दिखलाता
सूखे पत्ते महक रहे हैं,
सुगंध मसालों की-सी आती
वृक्षों के श्वेत तनों को धूप,
अतलस-रेशम-सा चमकाती
मुझ को भाता है सुखद क्षण यह,
परम आनन्द अनोखा
फिर कसक से भर जाता मन,
लगता यह क्षण भी धोखा
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय