छंद दुरमिला सवैया / शम्भुदान चारण
नभ वाय वखोणीय, तेजस पौणीय , भूमि भागोणीय जग जठे
महा भूत भिगोणीय , देह वाणोंणीय , प्राकृत जोणीय पिंड जठे
स्थूल अखोणीय च्यारो ही खोणीय वन्दे विरोणीय ब्रम्ह जठे
तन में तत तोणीय पोंचू ही जाणीय पंच विशोणीय पोणी पटे ||१||
दुःख दर्द दिखोणीय, सुख सजा वीय भाव भरा बीय करम कटे
बुध में मन बांधीय , पांचो ही प्राणीय, गोदस गाभीय जोग जुटे
सत्रह तत साजीय, सुक्ष्क्षम वाजीय लोकसभा सामाजीय लोक पटे
तन में तत तोणीय पोंचू ही जाणीय पंच विशोणीय पोणी पटे ||२||
विधिया विनवाणीय कारण जोणिय अंग अखोणीय ज्ञान घटे,
दुःख दोष दिखोणीय जोण न भेद गोणीय भाव कटे,
बिनज्ञान वसोणीय होवत हाणीय खेद वणोणीय पाप पटे,
तन में तत तोणीय पोंचू ही जाणीय पंच विशोणीय पोणी पटे ||३
जन निपीतु जाणिय अन्नखवाणीय पींड वणाणिय पेट थपे,
उपज इण पाणय जग्ग पाताणय देह दिखाणय जाग जपे,
अन खुद खाणिय देह चलोणीय कोस अखाणीय एक अटे,
तन में तत तोणीय पोंचू ही जाणीय पंच विशोणीय पोणी पटे ||४