भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छगन मगन प्यारे लाल कीजिये कलेवा / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छगन मगन प्यारे लाल कीजिये कलेवा ।
छींके ते सघरी दधीऊखल चढ काढ धरी, पहरि लेहु झगुलि फेंट बांध लेहु मेवा ॥१॥
यमुना तट खेलन जाओ, खेलत में भूख न लागे कोन परी प्यारे लाल निश दिन की टेवा।
सूरदास मदन मोहन घरहि क्यों न खेलो लाल देउंगी चकडोर बंगी हंस मोर परेवा ॥२॥