छठा तत्व / ब्रज श्रीवास्तव
शब्द स्थिर नहीं रहते
उनका काम नहीं रूकता
जैसे सूरज नहीं रूकता कभी
प्रकाश देने के भाव में
जैसे पानी नहीं रूकता नदी का
एक जगह
जैसे धरती दिखाई देती है रूकी हुई
शब्द भी दिखाई दे सकते हैं
स्थिर
अगर माध्यम न भी मिले
तो भी शब्द नहीं रूकते
चित्त में विचरण करते रहते हैं
कभी कभी हम उन्हें
देखने की गिरफ्त में ले लेते हैं
कभी कभी हम उन्हें
मंत्र बना देते हैं
कभी बना देते हैं गाली
और वे उस रूप में ही
चलना शुरू कर देते हैं
सदियों से कुछ शब्द
चल रहे हैं लगातार
वाक और लेख में
बैठ ज़रूर जाते हैं
मगर चलते हैं अपनी गति से
अभी जब मैं
लिख रहा हूँ
शब्दों को
वे अनगिनत जगह पर मौजूद हैं
उन्होंने मेरी पुकार का मान रखा
और आ गए
यह छठा तत्व है
अपने अस्तित्व में
अक्षरों और ध्वनियों के
क्वांटम से बना हुआ
और चल रहा है
हम और तुम भी स्थिर हैं
पर हमारे नाम से जुड़े शब्द
अभी भी यात्रा पर हैं