भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छत्तीसगढ़ की माटी से / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छत्तीसगढ़ की माटी से
प्रेम भरी परिपाटी से
मेहनत कश के हाथों में
घोर अमा की रातों में
नया दिया जलाओ रे।
जगमग ज्योति जगाओ रे।।

घोर उपेक्षा अन्यायों में
चाहत की मजबूरी मंे
हिंसा घोर पनपती साथी
करूण किरण की दूरी में
व्यवधानों की परिधि रेख से
अंधियारा दूर हटाओ रे।
जगमग ज्याति जगाओ रे।।

मैला माँ का आँचल है
महानदी में आँसू जल है
लाल हमारा भूखा है
वन प्रांतर सब सूखा है
  बटमारों से पहरेदार मिले
मुरझाये बिन फूल खिले
झोपड़ियाँ खाली खाली हैं
आई फिर दीवाली है
तम का अजगर पसर न पाये
आओ मशाल उठाओ रे।
जगमग ज्योति जगाओ रे।।

अपना है राज, दुनिया है अपनी
मुन्ना अपना मुनिया है अपनी
धरती पर जितने लाल चले हैं
धरती के भीतर उतने लाल पले हैं
यह हरियाली अपनी है,
यह सारा आकाश है
 आज साँस भर जागे हम में,
एक नया विश्वास है
घर-घर गूँजे श्रम का गीत
सुख सपनों का हो संगीत
आज पसीने की बूंदों से
भागीरथ बन जाओ रे।
गंगा नई बहाओ रे।
जगमग ज्योति जगाओ रे।