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छत के किसी कोने में / सुकीर्ति गुप्ता
Kavita Kosh से
छत के किसी कोने में
अटकी वह बूंद
टीन पर ‘टप्प’ गिरी
समय के अंतराल पर
गिरना जारी है उसका
लय-सीमा बंधी वह
गिरने के बीच
प्रतीक्षा दहला देती है
कि अब गिरी…अब गिरी.
वर्षा थम चुकी है
छत से बहती तेज धार
एकदम चुप है
पर यह धीरे-धीरे संवरती
शक्ति अर्जित कर
गिरती है ‘टप्प’ से