भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छन्नूजी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
दाल भात रोटी मिलती तो।
छन्नू नाक चढ़ाते।
पुड़ी परांठे रोज़ रोज ही।
मम्मी से बनवाते।
हुआ दर्द जब पेट, रात को।
तड़फ-तड़फ चिल्लाये।
बड़े डाक्टर ने इंजॆक्शन
आकर चार लगाये।
छन्नूजी अब दाल भात या।
रोटी ही खाते हैं।
पुड़ी परांठे।दिए किसी ने
गुस्सा हो जाते हैं।