भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छपनिया काल रे छपनिया काल / राजस्थानी
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
ओ म्हारो छप्पन्हियो काल्ड
फेरो मत अज भोल्डी दुनियाँ में.
बाजरे री रोटी गंवार की फल्डी
मिल जाये तो वह ही भली
म्हारो छप्पन्हियो काल्ड
फेरो मत अज भोल्डी दुनियाँ में.