छर-छर छूटै घाम / अंगिका दोहा शतक / राहुल शिवाय
आय प्रदुषण सेॅ भेलै, परिवेशो बेहाल ।
फागुन, जेठोॅ रँ तपै, मौसम की ई हाल ।1।
बरगद भी बेहाल छै, खाय रौद सेॅ मात ।
'राहुल' दुभड़ी के भला, बोलोॅ की औकात ।2।
धिपलोॅ हवा-बतास सेॅ, होलै गरम मिज़ाज ।
सुखलोॅ कुइयां ताल नेॅ, करै कोढ़ मेॅ खाज ।3।
आगोॅ रँ के रौंद छै, धरती छोड़ै भाँप ।
एक्के गाछी तोॅर मेॅ, 'राहुल' ! गिद्धा-साँप ।4।
बड़ी प्यास छै मोॅन मेॅ, छर-छर छूटै घाम ।
झौड़ पड़ै जे जेठ मेॅ, मिलतै तब आराम ।5।
घामोॅ सेॅ घमजोर छै, जेठोॅ के दिन-रात ।
'राहुल' देख सरंग केॅ, खोजै छै बरसात ।6।
रही-रही बिन्डौ उठै, भरी-भरी केॅ धूल ।
खिलना तभियो नै तजै, गुलमोहर के फूल ।7।
आम, लीची बाजार मेॅ, फरलै सगरो बेल ।
फूलोॅ सेॅ झुकलोॅ दिखै, चारो तरफ कनेल ।8।
कटहल के सब्जी बनै, कुओॅ छै तैयार ।
तरबूजा से भेॅ गेलै, सबकेॅ देखोॅ प्यार ।9।
बतिया-खीरा नोॅन मेॅ, रगड़ी-रगड़ी खाय ।
सत्तू घोरी केॅ पियै, भोरेॅ-भोर 'शिवाय' ।10।
रचनाकाल- 11 अप्रेल 2013