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छविनाश मिश्र के निधन पर / दिनेश्वर प्रसाद
Kavita Kosh से
तुम्हारे नहीं होने से
फूलों की सुगन्ध कुछ कम हो गई है
और दुधमुँहें बच्चों की हंसी
और भोर के पक्षियों का कलरव
कुछ फीका पड़ गया है
मन के किस कमल से
फूटती थी तुम्हारी सुगन्ध
किस कनखल से
उठती थी तुम्हारी हंसी
जबकि
दुनिया भर का गरल
और पाताल भर का अन्धेरा
तुम्हारी क़िस्मत थे?
(23 अक्तूबर 1990)