भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छिनी गेलै सुख आरो रही गेलै दुख खाली / अनिल शंकर झा
Kavita Kosh से
छिनी गेलै सुख आरो रही गेलै दुख खाली
लोरोॅ के समन्दरें नें गला सें लगैलके।
फूलो के पंखुरिहौ सें देहु सुकुमार छेलै
तेकरहौ कौने हेनोॅ रंग काँटा पे सुवैलकेॅ।
जेकरा आशीषै लेली दुनियाँ कोहारै चाही
तेकरा सराफोॅ सें समाजें ने बोझलकै।
जेकरा सुहासोॅ सें ई धरती सुहानोॅ लागै
तेकरा ठोरोॅ के हँसी निठुरें चुरैलकै॥